Home Planet राहु की महादशा का प्रभाव और उपाय Rahu Mahadasha: Effects and Remedies

राहु की महादशा का प्रभाव और उपाय Rahu Mahadasha: Effects and Remedies

राहु से पीडि़त व्‍यक्ति जब चिकित्‍सक के पास जाता है तो चिकित्‍सक प्रथम दृष्‍टया य निर्णय नहीं कर पाते हैं कि वास्‍तव में रोग क्‍या है, ऐसे में जांचें कराई जाती है, और आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि ऐसी मरीज जांच रिपोर्ट में बिल्‍कुल दुरुस्‍त पाए जाते हैं। बार बार चिकित्‍सक के चक्‍कर लगा रहे राहु के मरीज को आखिर चिकित्‍सक मानसिक शांति की दवाएं दे देते हैं (Depression in Rahu Mahadasha)।

राहु महादशा का प्रभाव और उपाय Rahu Mahadasha Effects and Remedies
राहु महादशा का प्रभाव और उपाय Rahu Mahadasha Effects and Remedies

राहु की महादशा का प्रभाव, फल और उपाय
Rahu Mahadasha: Effects and Remedies

किसी जातक की कुण्‍डली में राहु की दशा या अंतरदशा (Rahu Mahadasha or Antardasha) चल रही हो तो उसे क्‍या समस्‍या आएगी। अपनी कुण्‍डली विश्‍लेषण के दौरान जातक का यह सबसे कॉमन सवाल होता है और किसी भी ज्‍योतिषी के लिए इस सवाल का जवाब देना सबसे मुश्किल काम होता है। इस लेख में हम चर्चा करेंगे कि राहु की मुख्‍य समस्‍याएं (Rahu related Problems) क्‍या हैं और जातक का इस पर क्‍या प्रभाव पड़ता है।

Rahu problem and solution लाल किताब के अनुसार विभिन्‍न भावों में राहू का असर devi devta
राहु महादशा का प्रभाव और उपाय Rahu Mahadasha Effects and Remedies

राहु क्‍या समस्‍या पैदा करता है, यह जानने से पूर्व यह जानने का प्रयास करते हैं कि राहु खुद क्‍या है। समुद्र मंथन की मिथकीय कथा के साथ राहु और केतु का संबंध जुड़ा हुआ है। देवताओं और राक्षसों की लड़ाई का दौर चल ही रहा था कि यह तय किया गया कि शक्ति को बढ़ाने के लिए समुद्र का मंथन किया जाए। अब समुद्र का मंथन करने के लिए कुछ आवश्‍यक साधनों की जरूरत थी, मसलन एक पर्वत जो कि मंथन करे, सुमेरू पर्वत को यह जिम्‍मेदारी दी गई, शेषनाग रस्‍सी के रूप में मंथन कार्य से जुड़े, सुमेरू पर्वत जिस आधार पर खड़ा था, वह आधार कूर्म देव यानी कछुए का था और मंथन शुरू हो गया।

इस मंथन में कई चमत्‍कारी चीजें निकली, लेकिन इससे पहले निकला हलाहल विष। इसका प्रभाव इतना अधिक था कि न तो देवता इसे धारण करने की क्षमता रखते थे और न राक्षस, सो शिव नेराहू की दशा का प्रभाव और फल Rahu : problem and solution इस हलाहल को अपने कंठ में धारण किया। इसके बाद लक्ष्‍मी, कुबेर और अन्‍य दुर्लभ वस्‍तुओं के बाद आखिर में निकला अमृत। वास्‍तव में पूरा समुद्र मंथन अमृत की खोज के लिए ही था, ताकि देवता अथवा राक्षस जिसके भी हिस्‍से अमृत आ जाए, वह उसे पीकर अमर हो जाए, लेकिन अमृत निकलने के साथ ही मोहिनी रूप में खुद विष्‍णु आ खड़े हुए और अपने रूप जाल से राक्षसों को बरगला कर अमृत का कुंभ चुरा लिया।

इस प्रकार राक्षस अमृत से विहीन हो गए। बाद में जब विष्‍णु सभी देवताओं को अमृत देकर अमर बना रहे थे, उसी समय स्‍वरभानु नाम का राक्षस चुपके से देवताओं की पंक्ति में आकर बैठ गया। स्‍वरभानु के पास खुद को छिपा लेने की शक्ति थी और दूसरे रूप धरने की भी। विष्‍णु ने कतार में बैठे स्‍वरभानु के मुख में अमृत की बूंद गिराई ही थी कि सभा में मौजूद सूर्य और चंद्रमा ने स्‍वरभानु को पहचान लिया और विष्‍णु से इसकी शिकायत कर दी। जैसे ही विष्‍णु को पता चला कि एक राक्षस धोखे से अमृत का पान कर रहा है, उन्‍होंने सुदर्शन चक्र लेकर स्‍वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया, लेकिन तब तक अमृत अपना काम कर चुका था। अब स्‍वरभानु दो भागों में जीवित था। सिर भाग को राहु कहा गया और पूंछ भाग को केतु।

सूर्य और चंद्रमा द्वारा शिकायत किए जाने से नाराज राहु और केतु बहुत कुपित हुए और कालांतर में राहु ने सूर्य को ग्रस लिया और केतु ने चंद्रमा को।

मिथकीय घटना के इतर देखा जाए तो राहु और केतु वास्‍तव में सूर्य और चंद्रमा के संपात कोणों पर बनने वाले दो बिंदू हैं। पृथ्‍वी पर खड़ा जातक अगर आकाश की ओर देखता है तो सूर्य और चंद्रमा दोनों ही पृथ्‍वी का चक्‍कर लगाते हुए नजर आत हैं। वास्‍तव में ऐसा नहीं है, लेकिन एक ऑब्‍जर्वर के तौर पर यह घटना ऐसी ही होती है। ऐसे में दोनों ग्रहों (यहां सूर्य तारा है और चंद्रमा उपग्रह इसके बावजूद हम ज्‍योतिषीय कोण से इन्‍हें ग्रह से ही संबोधित करेंगे) की पृथ्‍वी के प्रेक्षक के लिए एक निर्धारित गति है। चूंकि पृथ्‍वी उत्‍तरी और दक्षिणी ध्रुवों पर केन्द्रित हो पश्चिम से पूर्व की ओर घूर्णन करती है, सो उत्‍तर की ओर बनने वाले संपात कोण को राहु (नॉर्थ नोड) और दक्षिण की ओर बनने वाले संपात कोण को केतु (साउथ नोड) कहा गया।


राहु की महादशा में अंतरदशाओं का क्रम
Rahu Mahadasha and Antardasha

महर्षि पाराशर द्वारा प्रतिपादित विंशोत्‍तरी दशा (120 साल का दशा क्रम) के अनुसार किसी भी जातक की कुण्‍डली में राहु की महादशा 18 साल की आती है। विश्‍लेषण के स्‍तर पर देखा जाए तो राहु की दशा के मुख्‍य रूप से तीन भाग होते हैं। ये लगभग छह छह साल के तीन भाग हैं। राहु की महादशा में अंतरदशाएं इस क्रम में आती हैं राहु-गुरू-शनि-बुध-केतु-शुक्र-सूर्य- चंद्र और आखिर में मंगल। किसी भी महादशा की पहली अंतरदशा में उस महादशा का प्रभाव ठीक प्रकार नहीं आता है। इसे छिद्र दशा कहते हैं। राहु की महादशा के साथ भी ऐसा ही होता है। राहु की महादशा में राहु का अंतर (Rahu Mahadasha Rahu Antardasha) जातक पर कोई खास दुष्‍प्रभाव नहीं डालता है। अगर कुण्‍डली में राहु कुछ अनुकूल स्थिति में बैठा हो तो प्रभाव और भी कम दिखाई देता है। राहु की महादशा में राहु का अंतर अधिकांशत: मंगल के प्रभाव में ही बीत जाता है।

राहु की महादशा मे ग्रहों की अंतर्दशा का प्रभाव
Effects of all planet’s Antardasha in Rahu Mahadasha

राहु में राहु के अंतर के बाद गुरु, शनि, बुध आदि अंतरदशाएं आती हैं। किसी जातक की कुण्‍डली में गुरु बहुत अधिक खराब स्थिति में न हो तो राहु में गुरू (Rahu Mahadasha Guru Antardasha) का अंतर भी ठीक ठाक बीत जाता है, शनि की अंतरदशा (Rahu Mahadasha Shani Antardasha) भी कुण्‍डली में शनि की स्थिति पर निर्भर करती है, लेकिन अधिकांशत: शनि और बुध की अंतरदशाएं जातक को कुछ धन दे जाती हैं। इसके बाद राहु की महादशा में केतु का अंतर आता है, यह खराब ही होता है, मैंने आज तक किसी जातक की कुण्‍डली में राहु की महादशा में केतु का अंतर (Rahu Mahadasha Ketu Antardasha) फलदायी नहीं देखा है। राहु में शुक्र कार्य का विस्‍तार करता है और कुछ क्षणिक सफलताएं देता है। इसके बाद का दौर सबसे खराब होता है। राहु में सूर्य, राहु में चंद्रमा और राहु में मंगल की अंतरदशाएं 90 प्रतिशत जातकों की कुण्‍डली में खराब ही होती हैं।


जातक की मानसिकता पर प्रभाव
Depression in Rahu Mahadasha

मिथकीय कहानी के अनुसार राहु केवल सिर वाला भाग है। राहु गुप्‍त रहता है, राहु गूढ़ है, छिपा हुआ है, अपना भेष बदल सकता है, जो ढ़का हुआ वह सबकुछ राहु के अधीन है। भले ही पॉलीथिन से ढकी मिठाई हो या उल्‍टे घड़े के भीतर का स्‍पेस, कचौरी के भीतर का खाली स्‍थान हो या अंडरग्राउण्‍ड ये सभी राहु के कारकत्‍व में आते हैं। राहु की दशा अथवा अंतरदशा (Rahu Mahadasha or Rahu Antardasha) में जातक की मति ही भ्रष्‍ट होती है। चूं‍कि राहु का स्‍वभाव गूढ़ है, सो यह समस्‍याएं भी गूढ़ देता है।

जातक परेशानी में होता है, लेकिन यह परेशानी अधिकांशत: मानसिक फितूर के रूप में होती है। उसका कोई जमीनी आधार नहीं होता है। राहु के दौर में बीमारियां होती हैं, अधिकांशत: पेट और सिर से संबंधित, इन बीमारियों का कारण भी स्‍पष्‍ट नहीं हो पाता है।

इसी प्रकार राहु से पीडि़त व्‍यक्ति जब चिकित्‍सक के पास जाता है तो चिकित्‍सक प्रथम दृष्‍टया य निर्णय नहीं कर पाते हैं कि वास्‍तव में रोग क्‍या है, ऐसे में जांचें कराई जाती है, और आपको जानकर आश्‍चर्य होगा कि ऐसी मरीज जांच रिपोर्ट में बिल्‍कुल दुरुस्‍त पाए जाते हैं। बार बार चिकित्‍सक के चक्‍कर लगा रहे राहु के मरीज को आखिर चिकित्‍सक मानसिक शांति की दवाएं दे देते हैं (Depression in Rahu Mahadasha)।

राहु वात रोग पर भी अधिकार रखता है, राहु बिगड़ने पर जातक को मुख्‍य रूप से वात रोग विकार घेरते हैं, इसका परिणाम यह होता है कि गैस, एसिडिटी, जोड़ों में दर्द और वात रोग से संबंधित अन्‍य समस्‍याएं खड़ी हो जाती हैं।

राहु के आखिरी छह साल सबसे खराब होते हैं, इस दौर में जब जातक ज्‍योतिषी के पास आता है तब तक उसकी नींद प्रभावित हो चुकी होती है (Sleep Disorders in Rahu), यहां नींद प्रभावित का अर्थ केवल नींद उड़ना नहीं है, नींद लेने का चक्र प्रभावित होता है और नींद की क्‍वालिटी में गिरावट आती है (Rahu and Sleep, Rahu and Insomnia)। मंगल की दशा (Mangal Mahadasha) में जहां जातक बेसुध होकर सोता है, वहीं राहु (Rahu Mahadasha) में जातक की नींद हल्‍की हो जाती है, सोने के बावजूद उसे लगता है कि आस पास के वातावरण के प्रति वह सजग है, रात को देरी से सोता है और सुबह उठने पर हैंगओवर जैसी स्थिति रहती है। तुरंत सक्रिय नहीं हो पाता है।

राहु की तीनों प्रमुख समस्‍याएं यानी वात रोग, दिमागी फितूर और प्रभावित हुई नींद जातक के निर्णयों को प्रभावित करने लगते हैं। इसका नतीजा यह होता है कि जातक के प्रमुख निर्णय गलत होने लगते हैं। एक गलती को सुधारने की कोशिश में जातक दूसरी और तीसरी गलतियां करता चला जाता है और काफी गहरे तक फंस जाता है।

ज्‍योतिष के क्षेत्र में एकमात्र राहु की ही समस्‍याए (Rahu Related Problems) ऐसी है जो दीर्धकाल तक चलती है। राहु के समाधान (Rahu Problem Solutions) के लिए कोई एकल ठोस उपाय कारगर नहीं होता है। ऐसे में जातक को न केवल ज्‍योतिषी की मदद लेनी चाहिए, बल्कि लगातार संपर्क में रहकर उपचारों को क्रम को पूरे अनुशासन के साथ फॉलो करना चाहिए। मेरा निजी अनुभव यह है कि राहु के उपचार  (Rahu Mahadasha Remedies) शुरू करने के बाद कई जातक जैसे ही थोड़ा आराम की मुद्रा में आते हैं, वे उपचारों में ढील करनी शुरू कर देते हैं, इसका नतीजा यह होता है कि जातक फिर से फिसलकर पहले पायदान पर पहुंच जाता है।

अपने 17 सालों के अनुभव में मुझे राहु की समस्‍या वाले जातक ही अधिक मिले हैं। सालों तक सैकड़ों जातकों के राहु के उपचार करते करते मैंने एक पैटर्न बनाया है, जो राहु के बदलते स्‍वभाव और प्रभावों को नियंत्रित कर सकने मे कामयाब साबित हुआ है। ऐसे में प्रभावी उपचार जातक को राहु की पीड़ा से बहुत हद तक बाहर ले आते हैं। अगर आप मेरी सेवाएं लेना चाहते हैं तो इस लिंक पर क्लिक करें और सेवा के लिए अनुरोध करें। आपकी कुण्‍डली का विश्‍लेषण और राहु के उपचार मैं मेल के जरिए भेजूंगा, इसके बाद आपको भी नियमित रूप से मुझे अपडेट करते रहना होगा। इसके बावजूद भी मैंने हमेशा यही कहा है कि राहु की समस्‍या का 70 प्रतिशत समाधान गारंटी से होता है, राहु की समस्‍या का पूरी तरह समाधान नहीं किया जा सकता, चाहें आप एक हजार ज्‍योतिषियों की सलाह ही क्‍यों न ले लें।


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Astrologer Sidharth Jagannath Joshi is one of the Best Astrologer in India, practicing in Vedic Astrology, Lal Kitab Astrology, Prashna Kundli and KP Astrology System.



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