Home Libra (Tula | तुला) मालव्य योग (Malavya Yog) – पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)

मालव्य योग (Malavya Yog) – पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)

मालव्य योग (Malavya Yog) पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)
मालव्य योग (Malavya Yog) पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)

मालव्य योग (Malavya Yog)
पंच महापुरुष योग (Panch Mahapurush Yog)

मालव्य योग (Malavya yog) मालव्य योग का निर्माण शुक्र करते हैं जब शुक्र वृषभ और तुला जो कि स्वराशि हैं या फिर मीन जो कि इनकी उच्च राशि है में होकर प्रथम, चतुर्थ, सप्तम या फिर दसवें भाव में विराजमान हों तो यह योग मालव्य महापुरुष योग कहलाता है।

ऐसे योग वाले जातक की चेष्‍टा और नेत्र स्त्रियों के सदृश्‍य सुंदर, शरीर का मध्‍य भाग किंचित दुबला अर्थात पतली कमर, नाक ऊंची, बलवान, गुणवान और शास्‍त्रों के भाव का जानने वाला, तेजस्‍वी, धनी तथा स्‍त्री, पुत्र एवं वाहन आदि से संपन्‍न होता है। इसकी स्‍त्री गुणवती होती है। ऐसा जातक राजा के तीन गुण अर्थात उत्‍साह, शक्ति और मंत्रणा में निपुण होता है। वह बड़ा उदार किंतु परस्‍त्रीगामी होता है। मतांतर से 70 या 77 वर्ष की उसकी आयु होती है। कुछ शास्‍त्रों ने ऐसे जातकों के मुख की लंबाई 13 अंगुल और कान से कान की लंबाई 10 अंगुल बताई है। जातक देश देशांतर का राजा होता है।

ऐसे जातक सुख-समृद्धि से संपन्न होते हैं। इनका रूझान कलात्मक और रचनात्मक कार्यों के प्रति अधिक होता है। माता लक्ष्मी की इन पर विशेष अनुकम्पा होती है। दांपत्य जीवन का सुख भी इन्हें खूब मिलता है। ये युद्ध और राजनीति में निपुणता प्राप्त करते हैं। यह व्‍यक्‍ति स्त्री, पुत्र, वाहन, भवन और अतुल संपदा का स्वामी होता है। इनका स्‍वभाव तेजस्वी, विद्वान, उत्साही, त्यागी,चतुर होता है। ये जातक फैशन, कलाकार, सौंदर्य प्रसाधन, कवि, नाटक कार, गुरु या सामाजिक कार्यो से संबंधित क्षेत्र में नाम व धन कमाते हैं।

Malavya Yog Panch Maha Purush Yog


मंगल, बुध, बृहस्पति, शुक्र और शनि पंच महापुरुष योग बनाते हैं जो कि जातक के लिये बहुत ही शुभ माने जाते हैं इनमें मंगल रूचक योग बनाते हैं तो बुध भद्र योग का निर्माण करते हैं वहीं बृहस्पति से हंस योग बनता है तो शुक्र से मालव्य योग एवं शनि शश योग का निर्माण करते हैं। इन पांचों योगों को ही पंच महापुरुष योग कहा जाता है।

यदि के पूर्ण बली हों तो ही उत्‍कृष्‍ट फल मिलते हैं। दूसरे ग्रहों का प्रभाव आने पर फल में उच्‍चता अथवा न्‍यूनता देखी जाती है। ऐसे में पंचमहापुरुष योगों में अधिकतम फल तब गिनना चाहिए जब बताया गया योग पूरी तरह दोषमुक्‍त हो। इन पांचों योगों में अगर मंगल आदि के साथ सूर्य एवं चंद्रमा भी हो तो जातक राजा नहीं होता, केवल उन ग्रहों की दशा में उसे उत्‍तम फल मिलते हैं। इन पांच योगों में से यदि किसी की कुण्‍डली में एक योग हो तो वह भाग्‍यशाली दो हो तो राजा तुल्‍य, तीन हो तो राजा, चार हो तो राजाओं में प्रधान राजा और यदि पांचों हो तो चक्रवर्ती राजा होता है। इस कथन में यह स्‍पष्‍ट नहीं होता कि ये पांचों योग किस प्रकार मिल सकते हैं।