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ज्‍योतिषी सलाह से लाभ की संभावना और सीमा Astrology Consultancy

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ज्‍योतिषी सलाह से लाभ की संभावना और सीमा Astrology Consultancy

किसी जातक को ज्‍योतिषी से कैसे और कितना लाभ प्राप्‍त हो सकता है, दूसरे शब्‍दों में कहें तो एक ज्‍योतिषी अपने जातक को कितना लाभ दिला सकता है और इसकी क्‍या सीमाएं हैं। इस बारे में कहीं कोई स्‍पष्‍ट सीमा रेखा नहीं खींची जा सकती, फिर भी ज्‍योतिषी से मिलने से पूर्व अगर आपको यह पता हो कि इस विषय की क्‍या संभावनाएं हैं और क्‍या सीमाएं हैं तो ज्‍योतिषीय सलाह (Astrology Consultancy) से होने वाले लाभ की संभावना भी आप सही सही ज्ञात कर पाएंगे।

एक जातक 1955 में 525 रुपए महीने के कमाता था, उस दौर में वह किसी डिग्री कॉलेज में प्रोफेसर हुआ करता था। वही जातक 1995 में 3000 रुपए पेंशन प्राप्‍त कर रहा था। किस दौर में वह अमीर था और किस दौर में गरीब। दूसरे उदाहरण में एक व्‍यवसायी जब अपनी कमाई के शीर्ष दौर में था, तो उसे खाना खाने का भी समय नहीं मिल रहा था, ऐसे में एक दिन वह पेशाब में तकलीफ की शिकायत को लेकर चिकित्‍सक के मिलता है और उसे बताया जाता है कि उसके पेशाब में क्रिएटिन बन रहे हैं जो एक प्रकार की भुखमरी का लक्षण है। वह व्‍यवसायी जो रोजाना चालीस से पचास हजार रुपए तक कमा रहा है, वह अमीर है या गरीब।

एक अन्‍य उदाहरण में एक जातक अधेड़ावस्‍था तक एक टेस्टिंग लैबोरेट्री में बतौर तकनीशियन काम करता है और एक दिन जब उसके पिता का निधन होता है तो वह अपने पिता की करोड़ों की जायदाद का वारिस बन जाता है। नई कैडेलेक और पुराने कुत्‍ते खरीदकर शाही जिंदगी जीने लगता है। इससे पहले अधेड़ावस्‍था तक पिता के ही घर में रहता है, लेकिन अपनी निजी जरूरतों और बच्‍चों के लालन पालन के लिए अपनी खुद की थोड़ी सी कमाई पर ही निर्भर रहना पड़ता है। वह जातक अमीर रहा या गरीब।

किसी जातक के पास कितना धन होगा, यह बताना ज्‍योतिषीय कोण से बहुत मुश्किल है। यह तो बताया जा सकता है कि जातक सुखी रहेगा या नहीं, जातक को लाभ होगा या नहीं, जातक को आय होगी या नहीं, जातक का स्‍वास्‍थ्‍य कैसा रहेगा, जातक को औचक लाभ होगा या नहीं। लेकिन यह नहीं बताया जा सकता कि जातक को आय/लाभ कितना होगा। यह यह आय/लाभ दस हजार का भी हो सकता है, दस लाख का भी या दस करोड़ रुपए का भी।

वास्‍तव में इसी सीमा से बाहर की अनिश्चितता का लाभ उठाकर ज्‍योतिषी जातक को अधिकतम लाभ दिलाने का प्रयास करता है। जब ज्‍योतिषी बताता है कि जातक के साथ दुर्घटना होगी, तो वह यह नहीं बता पाता है कि दुर्घटना में जातक का हाथ टूटेगा, पांव टूटेगा या रीढ़ की हड्डी टूटेगी। वह केवल दुर्घटना की ओर संकेत करता है। अब जातक की तात्‍कालिक अवस्‍था ही उसके डैमेज को तय करती है।

अगर देश काल की बात की जाए तो रोजाना मुंबई की लोकल में यात्रा करने वाले और गांव में साइकिल चलाने वाले जातकों के साथ दुर्घटना की तीव्रता भी अलग अलग होगी। अब यह दुर्घटना कितना नुकसान पहुंचाती है, इसे भी सही सही काउंट नहीं किया जा सकता, क्‍योंकि मुंबई लोकल से गिरकर घायल हुए व्‍यक्ति को मुंबई के सर्वश्रेष्‍ठ अस्‍पताल में कुछ घंटों में सर्वश्रेष्‍ठ चिकित्‍सा मिल सकती है, वहीं गांव में साइकिल चला रहे व्‍यक्ति के चोटिल होने पर कई घंटे तक बिना नजर में आए भी पड़ा रह सकता है।

इसी कारण कहा जाता है कि ज्‍योतिषीय योगों को लागू करने से पहले देश काल और परिस्थिति की जानकारी होनी आवश्‍यक है। इसके बिना सटीक कथन नहीं किया जा सकता। यही कारण है कि कुछ ज्‍योतिषी किसी विशेष विषय और अवस्‍था को लेकर इतने अधिक दक्ष हो जाते हैं कि वे ज्‍योतिष के विशिष्‍ट सवालों के प्रति अत्‍यधिक सटीक भविष्‍यवाणियां करने लगते हैं, जबकि दूसरे क्षेत्रों में उनकी उतनी पकड़ नहीं रहती है।

किसी प्रोफेशनल ज्‍योतिषी के पास आने वाले अधिकांश सवालों में बच्‍चों का स्‍वास्‍थ्‍य, बालकों की पढ़ाई, युवाओं की नौकरी और विवाह, अधेड़ों के ऋण, मकान, स्‍वास्‍थ्‍य और परिवार को लेकर सवाल ही प्रमुख होते हैं। इन आठ दस विषयों पर वे समय के साथ अधिक सटीक होते चले जाते हैं, वहीं लीक से हटकर सवाल आने पर उन्‍हें विचार करने में अधिक समय लगता है।

जब ज्‍योतिषीय योग हमें स्‍थूल रूप से संकेत देते हैं कि भविष्‍य इस प्रकार का होना है, तो वहीं से संभावनाओं से द्वार भी खुलते हैं। भले ही ईश्‍वरीय सत्‍ता में विश्‍वास का आधार यह कहता हो कि सबकुछ पूर्व नियत है, अर्थात् जैसी ईश्‍वर ने योजना (डिवाइन प्‍लान) बना रखा है, सबकुछ वैसा ही होगा। इसके बावजूद दिव्‍य योजना के पूरा होने के बीच संभावनाओं के बहुत से द्वार खुले मिलते हैं। एक ज्‍योतिषी के रूप में मैं देखता हूं कि एक जातक का खराब समय आया है, यहां खराब समय वित्‍तीय, शारीरिक, मानसिक, पारिवारिक या ऐसे ही किसी विशिष्‍ट कोण से हो सकता है। मसलन राहु की दशा अथवा अंतरदशा का दौर हो तो, जातक को सबसे पहले सलाह यही दे दी जाती है कि इस दौर में चूंकि निर्णय गलत होते हैं, सो अपने स्‍तर पर किसी भी प्रकार का बड़ा निर्णय करने से बचें।

केवल इसी एक सलाह से जातक कई बार खराब समय में नुकसान के दुष्‍चक्र में फंसा होने पर अधिक प्रयास करने के बजाय शांत होकर बैठ जाता है और उसका गड्ढे में लुढ़कने की प्रक्रिया तुरंत थम जाती है। अब जातक का समय खराब है, यहां खराबी उसके निर्णय लेने पर प्रभावी होती है, और ज्‍योतिषी की सलाह पर वह निर्णय लेना बंद कर देता है तो गलत निर्णयों का दुष्‍प्रभाव भी थम जाता है। यहां जातक के समय में सुधार नहीं हुआ, लेकिन लुढ़कन थम गई।

एक अन्‍य उदाहरण में एक जातक अपने जीवन के सबसे सुखद बीस वर्ष शुक्र की महादशा में भोगता है। इस दौरान वह न तो कोई बहुत बड़ी राशि कमाता है और न ही किसी प्रकार का व्‍यापार व्‍यस्थित करने के लिए भागदौड़ करता है। चूंकि सुख लिखा है सो सुखी रहता है, लेकिन इससे पहले की केतू की महादशा के दौरान वह दिन रात मेहनत करता है और व्‍यापार की पृष्‍ठभूमि तैयार कर लेता है।

अब हम देखते हैं कि काम करने का समय अलग है और जातक द्वारा उसका लाभ लेने का समय अलग। इसी के साथ यह संभावना भी होती है कि जातक किस स्‍तर पर सुखी होगा। अगर जातक ने छोटे व्‍यवसाय और छोटी पूंजी का काम किया है तो उसे अपने स्‍तर तक का लाभ मिलेगा, अगर जातक ने बड़े स्‍तर के व्‍यवसाय के लिए मेहनत की है तो बड़ा एंपायर खड़ा होगा। अब सुख भोगने की स्थिति में दोनों जातक सुख भोग रहे हैं। एक कुछ लाख के मासिक आय वाले धंधे में खुश है तो दूसरा जातक हजारों करोड़ का एंपायर खड़ा करता है।

किसी भी जातक के विकास का क्रम हमेशा सिग्‍माइड ग्राफ यानी अंग्रेजी के कैपीटल S की तरह होता है। मसलन केतू और उसके बाद आने वाली शुक्र की दशा का ही उदाहरण लें तो केतू की दशा के दौरान जातक अपने विकास की पठार अवस्‍था में होता है। वह मेहनत करता है, लेकिन उसका परिणाम उसे दिखाई नहीं देता। केतू की सात साल की दशा के बाद शुक्र की बीस साल की महादशा आती है।

शुक्र के शुरूआती दौर में ही उसे पहले किए गए काम का फल तेजी से मिलता है और बाकी की दशा के दौरान वह उसे संभालकर रखने और धीरे धीरे बढ़ाते रहने का प्रयास करता है। जब जातक केतू की दशा के दौरान ज्‍योतिषी से मिलता है तो स्‍पष्‍ट है कि वह अपने खराब समय में ज्‍योतिषी से मिल रहा है, लेकिन यहां ज्‍योतिषी उसे थककर बैठने या बेहतर समय का इंतजार करने के लिए कहने के बजाय अधिक से अधिक मेहनत करने की सलाह देगा तो सही सलाह होगी। क्‍योंकि अगर इस दौर में जातक बैठ गया तो आगे मिलने वाले लाभ की मात्रा और आयाम भी घटते चले जाएंगे।

समय की नब्‍ज को पहचान लेने के बाद किसी जातक की आय और लाभ समय के साथ किए गए प्रयास सापेक्ष होते हैं। अच्‍छा और बुरा समय तो हर कोई भोगता ही है।