Home Astrology Kundli Horoscope हनुमान जी (Hanuman) और इष्ट प्राप्ति

हनुमान जी (Hanuman) और इष्ट प्राप्ति

Lord hanuman help to remove obstacles in ones life
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वर्तमान में सबसे ज्यादा भीड़ आकर्षित करने वाले मंदिरों में हनुमान जी (Hanuman) के मंदिर प्रमुख हैं। हम देखतें हैं हर गली नुक्कड़ पर हमें श्रीहनुमान जी के मंदिर मिल जातें हैं। मंगलवार शनिवार दर्शनार्थी भीड़ की लम्बी कतार। किसी से पूछो तुम्हारे इष्ट कौन हैं झट से हनुमान जी का नाम ले देगा।

​सर्वप्रथम तो हनुमान जी इष्ट होने लायक मैटेरियल ही नहीं हैं। हनुमान जी  (Hanuman) को इष्ट मानना स्वयं उनके साथ अन्याय हैं, उनकी महिमा का, उनकी गरिमा का अवमूल्यन हैं।

हनुमतलाल की गरिमा उनकी गुरुता से हैं। हनुमान जी (Hanuman) इष्ट प्राप्ति कराने वाले गुरुदेव ही हो सकतें हैं और यही उनकी महिमा हैं. सांसारिक ताप से पीड़ित जीवों को ज्ञान प्रदान कर ब्रह्म की, इष्ट की प्राप्ति कराना, हरि विमुख जीवों को भक्ति मार्ग पर अग्रसर करने वाले गुरु, यह हनुमानजी का स्वरुप हैं।

हनुमान जी  श्रीसीताराम की भक्ति-कृपा प्राप्ति कराने वाले गुरुदेव हैं, हनुमतलाल  भक्ति के परमाचार्य हैं। जो व्यक्ति हनुमान जी की उपासना/साधना कर उनसे सांसारिक भोग, भौतिक उन्नति की कामना करता हैं उसका यह कर्म भक्तिमार्ग से तो निष्फल हैं ही कर्मकाण्डीय रूप में भी निष्फल हैं।

कर्मकाण्ड में भी सैद्धांतिक रूप से जो देव जिस तत्व का अधिष्ठाता होता हैं वह साधना के फल स्वरुप वही तत्व प्रदान सकता हैं।

आध्यात्मिक और भौतिक दोनों ही दृष्टि से हनुमत कृपा जीव को ब्रह्म की ओर ही उन्मुख करेगी, संसार में उसको अपने संसाधन परहित में लगाने के लिए प्रेरित करेगी।

हनुमान जी को समझने का प्रयास करें :

Hanuman ji

हनुमान जी (Hanuman) के स्वरुप को समझने से पहलें हमें उनके ध्येय वाक्य को पहले समझना होगा। श्रीहनुमानजी का ध्येय वाक्य हैं”राम काज कीन्हे बिनु मोहि कहाँ बिश्राम” हनुमान जी निरंतर रामजी के काज में लगे हुए हैं बिना विश्राम। हनुमान जी का प्राकट्य ही राम काज के लिए हुआ हैं –

“राम काज लगि तव अवतारा”
“राम काज करिबे को आतुर”
“रामचन्द्र के काज संवारे”

उनका अवतरण राम-काज के लिए, उनकी आतुरता राम-काज के लिए, वस्तुतः उनकी सम्पूर्ण चेतना ही राम-काज संवारने के लिए हैं, इसके बिना इन्हे चैन नहीं और बस निरंतर प्रभु श्रीराम के काज को आज तक सँवारे जा रहे हैं।

निरंतर ! मन में शंका उठेगी की अब कौन सा काम बाकी हैं राम काज तो कब का पूरा हुआ। सुग्रीव को उसका राज मिल गया, सीताजी की खोज हो गयी, लंका भी जल गयी, संजीवनी बूटी भी आ गयी, रावण मारा गया और राम राज की स्थापना भी हो गयी

अब क्या राम काज शेष रहा ?
पर क्या सृष्टि के कण कण में रमण करने वाले श्रीराम की रामायण इतनी ही हैं ?
क्या किसी काल विशेष की घटनाओं का वर्णन ही रामायण हैं ?

नहीं ! हरि अनंत हैं उनकी कथा अनंत हैं। सम्पूर्ण जगत सियाराम मय हैं। कण कण में राम हैं कण कण में रामायण का विस्तार हैं। युग विशेष की सीमा में तो हनुमान ने सीता की खोज पूरी कर ली और उनका मिलन भी राम से हो गया परन्तु यह जो ब्रह्म अंशी जीव “आत्माराम” हैं इसकी सीता अर्थात शांति का हरण विकार रुपी रावण नें कर लिया हैं निरंतर कर रहा हैं उसी आत्माराम को उसकी शांति सीता का मिलन विकार रुपी रावण का वध करवाकर करा देना ही हनुमान का निरंतर राम काज हैं।

श्री शंकराचार्य कहतें हैं -“शान्ति सीता समाहिता आत्मारामो विराजते। अब जो जीव की ये शान्ति हैं यह खो गयी हैं। खो नहीं गयी वस्तुतः उसका हरण हो गया हैं, विकार रुपी रावण द्वारा उसका हरण हुआ हैं। सीता धरती की बेटी हैं अर्थात हमारा धरती से जुड़ाव, सरल संयमित जीवन ही शांति प्रदान करता हैं।

लेकिन जहां सोने की लंका अर्थात अपरिमित महत्वकांक्षाओं से भौतिक संसाधनो की लालसा से विकार बलवान होंगे लोभ प्रबल होगा बस वहीँ हमारी शांति लुप्त हो जाएगी। हम विकारों के दुर्गुणों के वश हुए भौतिकता में अपनी शांति तो तलाश रहें हैं लेकिन वह मिल नहीं रही मिल भी नहीं सकती। जब तक रावण का मरण ना होगा राम से सीता का मिलन भी ना होगा।

पर रावण को मारने से पहले सीता की खोज जरूरी हैं और यह दोनों काम बिना हनुमान के संभव नहीं हैं। हनुमान अर्थात जिसने अपने मान का हनन कर दिया हैं।

हम अपने जीवन में अहंकार का नाश करके ही अपने आत्मा रुपी राम से शांति रूपा सीता का मिलन संभव कर सकतें हैं।और आगे श्रीराम का काज क्या हैं ? राम की प्रतिज्ञा हैं – “निशिचर हीन करहुं महि “। राम अवतार का हेतु हैं –

“असुर मारि थापहिं सुरन्ह राखहिं निज श्रुति सेतु।
जग बिस्तारहिं बिसद जस राम जन्म कर हेतु॥”
“जब जब होई धरम कै हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी॥”

राम का लक्ष्य हैं निशिचर विहीन धरा, अर्थात तामसी वृत्तियों का दमन और सात्विकता का प्रसार। जब जब धर्म की हानि होती हैं यानी संसार की धारणा शक्ति समाज के अनुशासन, पारस्परिक सौहार्द्य का, व्यक्ति के सहज मानवीय गुणों का जब पतन होता हैं तो उस स्थिति का उन्मूलन राम का कार्य हैं।

​श्रीमदभगवद गीता के सोलहवें अध्याय में भगवान ने मनुष्य मात्र को दो विभागों में विभाजित कियां हैं और उनके लक्षणों की विशद व्याख्या की हैं।

Bajrang bali

ऐसी आसुरी वृत्तियों वाले मनुष्यों का नियमन और दैवीय सात्विक प्रवृत्ति जनो को सहज जीवन की सुरक्षा का व्यहन करना राम का कार्य हैं। राम के इसी कार्य को श्रीहनुमत लाल निरंतर बिना विश्राम किये किये जा रहें हैं।राम शाश्वत हैं, तो उनकी यह सृष्टि भी जड़-चेतन सहित शाश्वत हैं।

और यह स्वभावतः ही ​ ​”सकल गुण-दोषमय” हैं। इसमें ऐसा नहीं हो सकता की गुण ही विद्यमान रहें और दोष समाप्त हो जाएँ। अवस्थाएं उच्त्तम और निम्नतम हो सकती हैं परन्तु अस्तित्व हीनता किसी की नहीं हो सकती। सद्गुणों का उभार और दुर्गुणों का नियमन ही राम काज हैं। और इस राम काज को सिवा हनुमान के कोई और कर भी नहीं सकता।

अपने अभिमान का हनन करने वाले हनुमान, सद ज्ञान और सद गुणों के सागर, बन्दर के समान चंचल मन को अपना दास बनाने वाले कपीश,मन-कर्म-वचन में समता से ​ ​लोक विख्यात, श्रीराम की सत्यता, शीलता,जीवन की मर्यादा के प्रसारक/ दूत ​, चर-अचर के हित चिंतन से उत्पन्न अतुलित आत्म बल के धाम हनुमान ही यह कार्य संपन्न कर सकतें हैं।

प्रत्येक वह व्यक्तित्व जो यह गुण-स्वाभाव-चरित्र अपने में समाहित कर सकता हैं वह अनंत राम की अनंत ​ रामायणों के अनंत हनुमानों में से एक हनुमान हैं।

हम ज्यों ज्यों अपने मान का हनन करेंगें अपने अभिमान को गलायेंगे त्यों त्यों हमारे अंतर में बल की वृद्धि होगी। ये बल तामसी नहीं अपितु सात्विक होगा जो अभय पद की प्राप्ति कराता हैं। श्रीराम कृपा ही अभय पद हैं जो बिना हनुमान के संभव ही नहीं हैं।

इसलिए श्रीहनुमतलाल जी से सिर्फ और सिर्फ भगवद्भक्ति प्राप्ति की प्रार्थना कीजिये। उनसे सिर्फ निरंतर परहित कर पाने के सामर्थ्य का वरदान मांगिये। यही वास्तविक श्रीहनुमत उपासना हैं।

लेखक : अमित शर्मा, जयपुर