Home Astrology Kundli Horoscope कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog): एक सफल झूठ

कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog): एक सफल झूठ

कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) : एक सफल झूठ
कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) : एक सफल झूठ

भले ही सुनने में अजीब लगे, लेकिन एक बात पहले स्‍पष्‍ट कर देना चाहता हूं कि काल सर्प दोष (kaal sarp dosh) जैसा कोई योग होता ही नहीं है।

राहु (rahu) और केतुु के बीच सभी ग्रह हों तो जातक की कुण्‍डली में कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) होता है। ऐसा कहा जाता है कि येे जातक अपनी जिंदगी में कभी सफलता हासिल नहीं कर पाता है। कभी सफलता प्राप्‍त भी करता है तो उसे बहुत दुख उठाने पड़ते हैं। यह योग कुण्‍डली के सभी अच्‍छे योगों को नष्‍ट कर देता है।

ज्‍योतिष की किसी भी शाखा में कभी भी कालसर्प जैसा योग नहीं बताया गया है। पिछले दो-तीन दशक में इस योग का जन्‍म हुआ और इसका असर इतना अधिक व्‍यापक बताया गया कि यह तेजी से सफल हुआ।

आज भारत के किसी भी कोने में चले जाइए, पुराना हो या नया ज्‍योतिषी, प्राचीन भारतीय ज्‍योतिष का पक्षधर हो या पश्चिमी हर कोई कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) को नकारने में असहज महसूस करेगा।

कालसर्प की ये मिथ्‍या धारणाएं हैं। हकीकत में तो इसके पीछे कोई आधार ही नहीं है।

प्राचीन भारतीय ज्‍योतिष में कहीं भी कालसर्प दोष (Kaal Sarp Dosh) का उल्‍लेख ही नहीं है।
इसी पिछली शता‍ब्‍दी के सातवें या आठवें दशक तक के अधिकांश ज्‍योतिषी भी इस योग के बारे में नहीं जानते थे, लेकिन इस योग के हर इंसान पर लागू किए जा सकने वाले फलादेशों ने कुछ ऐसा चमत्‍कार पैदा किया कि बड़ी संख्‍या में लोगों ने इसे मानना शुरू कर दिया।

पिछले कुछ सालों में तो कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) ने तेजी से विकास किया है। अब बाजार में आ रही पुस्‍तकों और कई ज्‍योतिषियों ने तो बाकायदा 12 तरह के कालसर्प योग (Kaal Sarp Dosh) बना दिए हैं।

इनमें अनन्‍त, कुलिक, वासुकी, शंखपाल, पद्म, महापद्म, तक्षक, कर्कोटक, शंखचूड़, घातक, विषधर और शेषनाग नाम के कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) बताए हैं। इनमें से हर एक कालसर्प योग (Kaal Sarp Dosh) का लक्षण और उपायों का वर्णन भी बाजार में आ चुका है।

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कैसे हुआ काल सर्प योग (Kaal Sarp Yog) का जन्म?

इसे एक लाइन में कहूं तो लोगों के छिछले दु:खों ने इस योग का पोषण किया। अधिक स्‍पष्‍ट करूं तो प्रगति में बाधा एक ऐसा शब्‍द है जिसे कई मायनों में उपयोग किया जा सकता है। हर कोई जिन्‍दगी में भाग्‍योदय चाहता है। भाग्‍योदय का अर्थ हुआ कि छप्‍पर फाड़कर कब मिलेगा।

होता यह है कि कुछ लोगों को छप्‍पर फाड़कर मिलता भी है। बाकी लोगों की आस बाकी रहती है। ऐसे में ‘छप्‍पर फटने में आ रही बाधा’ के बारे में लोग जब ज्‍योतिषी से पूछते हैं तो ज्‍योतिषी उन्‍हें बतलाता है कि आपकी कुण्‍डली में कालसर्प योग है सो आप सफल नहीं हो सकते हैं।

अब उपाय करना होगा। और लोग लग जाते हैं उपाय करने। उपाय के दौरान पूरा ध्‍यान सफलता और उसके प्रयासों पर लगता है। सफलता मिल जाए तो कालसर्प का ईलाज हो गया और सफलता न मिले तो ठीकरा बेचारे कालसर्प पर फूटना है ही

प्रख्‍यात ज्‍योतिषी बैंगलोर वेंकट रमन (BV Raman) ने ज्‍योतिषीय योगों पर किए अपने अध्‍ययन में पाया कि प्राचीन भारतीय ज्‍योतिष में कहीं भी कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) का उल्‍लेख नहीं है। केवल एक जगह एक सामान्‍य सर्प योग (sarp yog) के बारे में जानकारी है।

प्राचीन ग्रंथों में इतना ही बताया गया है कि राहु और केतु के मध्‍य सभी ग्रह होने पर सर्प योग बनता है। फर्ज कीजिए मेष में राहु है और तुला में केतु इसके साथ सारे ग्रह मेष से तुला या तुला से मेष के बीच हों। इसे सर्प योग कहा जाएगा।

ऐसा माना गया है कि राहु सरीसृप है और इसके सिर से पूंछ के बीच सारे ग्रह हैं। इसका फल भी जातक कुण्‍डली के बजाय मण्‍डेन ज्‍योतिष पर बताया गया है।

यानि देश और शासक पर इस योग का बुरा फल होता है। वे नष्‍ट हो जाते हैं। ज्‍योतिषी बीवी रमन ने अपनी पुस्‍तक तीन सौ महत्‍वपूर्ण योग के आखिर में एक अतिरिक्‍त अध्‍याय लिखकर इस योग के प्रति लोगों में बढ़ रही भ्रांति के प्रति चिंता प्रकट की। उन्‍होंने लिखा है कि कालसर्प योग को अनावश्‍यक महत्‍व नहीं देना चाहिए।

कुछ ज्‍योतिषी इसका असर आयु तो कुछ उन्‍नति से जोड़ते हैं, लेकिन किसी योग के बजाय सम्‍पूर्ण कुण्‍डली से विश्‍लेषण से ही सही निष्‍कर्ष निकल सकता है कि जातक में सफल या विफल होने की कितनी स्थितियां बन रही हैं। कोई एक योग पूरी कुण्‍डली का फल देने में सक्षम नहीं होता है।

उन्‍होंने कहा कि मण्‍डेन ज्‍योतिष में हो सकता है कि इस योग का अधिक असर दिखाई दे, लेकिन व्‍यक्तिगत कुण्‍डली में इसका अधिक महत्‍व नहीं है। रमन ने तो कालसर्प योग वाले जातक को अपनी क्षमता पहचानने वाला, राजयोग होने पर उच्‍च पद पर पहुंचने और आध्‍यात्मिक मामलों में ऊंचाइयां छू सकने वाला जातक बताया है।

क्‍या है कालसर्प योग (What is Kaal Sarp Yog)?

प्राचीन भारतीय ज्‍योतिष में सर्प योग बताया गया है। इस योग का अर्थ है कि कुण्‍डली में सात ग्रह राहु और केतु के एक ओर आ गए हैं। फर्ज कीजिए मेष में राहु है और तुला में केतु इसके साथ सारे ग्रह मेष से तुला या तुला से मेष के बीच हों।

इसे सर्प योग (sarp yog) कहा जाएगा। ऐसा माना गया है कि राहु सरीसृप है और इसके सिर से पूंछ के बीच सारे ग्रह हैं। बाद में जोधपुर के एक ज्‍योतिषी ने इस योग को कालसर्प बना दिया। यानि समय पर सांप कुण्‍डली मारकर बैठा हुआ।

इन लोगों को उपचार नासिक के महाकाल मंदिर में शुरू किया गया और सफलता मिलने के कसीदे गढ़े गए। अति तो तब हुई जब जोधपुर से नासिक तक बाकायदा बस तक चलने लगी। बाद में देश के अन्‍य ज्‍योतिषियों ने भी बहती गंगा में हाथ धोए।

सर्प से कालसर्प बना और कालसर्प से अब विषधकर कालसर्प, नागराज कालसर्प, विपरीत कालसर्प और राजयोग (rajyog) कालसर्प तक बनने लगे हैं। इससे जातकों को इस तरह शापित कर दिया जाता है कि संबंधित व्‍यक्ति के जुकाम भी हो जाए तो लगता है कालसर्प का दोष आड़े आ रहा है।

दुनिया के 30 प्रतिशत लोग चपेट में

हम सांख्यिकी आधार पर देखें तो दुनिया के तीस प्रतिशत से अधिक लोगों की कुण्‍डली में कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) विद्यमान होने की स्थिति बनती है।

ऐसे में एक ही अस्‍पताल में एक घंटे के अंतराल में पैदा हुए दो जातकों की कुण्‍डली में कालसर्प होगा, लेकिन इनमें से एक सफल और दूसरा विफल जातक बन सकता है।

छह अरब की जनसंख्‍या में से 180 करोड़ लोग एक ही योग के दुष्‍प्रभाव से ग्रसित हों, यह व्‍यवहारिक रूप से संभव नहीं लगता।

मनोवैज्ञानिक आक्रमण
(Psychological Effects of KaalSarp Dosh)

इस स्‍थूल योग के प्रभावों को इस तरह बनाया जा रहा है कि इसे हर किसी पर लागू किया जा सके। जिंदगी में संघर्ष अधिक होना, वैवाहिक जीवन में तनाव, छिपे हुए शत्रु, मित्रों और संबंधियों से धोखे की आशंका सहित ऐसे फलादेश जो किसी पर भी लागू किए जा सकें। इस योग में शामिल किए गए हैं।

इसके साथ ही प्रगति में बाधा एक ऐसा शब्‍द है जिसे कई मायनों में उपयोग किया जा सकता है। हर कोई जिन्‍दगी में भाग्‍योदय चाहता है। भाग्‍योदय का अर्थ हुआ कि छप्‍पर फाड़कर कब मिलेगा। होता यह है कि कुछ लोगों को छप्‍पर फाड़कर मिलता भी है। बाकी लोगों की आस बाकी रहती है।

ऐसे में ‘छप्‍पर फटने में आ रही बाधा‘ के बारे में लोग जब ज्‍योतिषी से पूछते हैं तो ज्‍योतिषी उन्‍हें बतलाता है कि आपकी कुण्‍डली में कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) है सो आप सफल नहीं हो सकते हैं। अब उपाय करना होगा। और लोग लग जाते हैं उपाय करने।

उपाय के दौरान पूरा ध्‍यान सफलता और उसके प्रयासों पर लगता है। सफलता मिल जाए तो कालसर्प दोष (Kaal sarp dosh) का निवारण हो गया और सफलता न मिले तो ठीकरा कालसर्प पर फूटना तय हो जाता है।

कालसर्प दोष निवारण के उपायों की लम्‍बी फेहरिस्‍त
(List of Kaal Sarp Dosh Remedies)

कालसर्प की बाधा के निवारण के लिए अब उपायों की एक लम्‍बी फेहरिस्‍त भी तैयार हो चुकी है। हालांकि शुरूआत में जब कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) के विभाजन प्रकाश में नहीं आए थे, तब तक ज्‍योतिषी साल में एक या दो बार नासिक के त्र्यंबकेश्‍वर मंदिर में पूजा कराई जाती थी।

बाद में सांप छोड़ने और सांप की आकृति की चांदी की अंगूठी पहनाने जैसे कई उपचार प्रचलित हुए। अब तो उपचारों की बाढ़ सी आ गई है। इनके पीछे किसी तरह का लॉजिक नहीं बताया गया है।

प्रचलित काल सर्प योग निवारण
(Kaal Sarp Dosh Remedy)

  • प्रतिदिन ऊं नम: शिवाय की 21 माला का जप (शिव की यह आराधना मूल रूप से चंद्रमा के उपचार के लिए है)
  • कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) का यंत्र बनाकर उसकी सरसों के तेल के दीपक जलाकर पूजा करें। काल सर्प योग पूजा (kaal sarp yog puja)का विधान अथवा काल सर्प दोष मंत्र (kaal sarp dosh mantra) का सूत्र कहां से आया है, स्‍पष्‍ट नहीं
  • चांदी की धातु से नाग के जोड़े बनवाकर तांबे के लोटे में डालकर बहते पानी में बहाएं। (यह लाल किताब (lal kitab) से उठाया हुआ उपचार है, चांदी और तांबे के मेल का कारण भी स्‍पष्‍ट नहीं)
  • महामृत्‍युंजय मंत्र का जाप करें। प्रति दिन ग्‍यारह माला। (मारक या बाधक स्‍थानाधिकपति की दशा में यह उपचार बताया जाता है,कालसर्प योग (Kaal Sarp Yog) का मृत्‍यु से कोई सम्‍बन्‍ध नहीं बताया गया है)
  • रोजाना ग्‍यारह बार हनुमान चालीसा (hanuman chalisa) का पाठ करें
    (यह मूल रूप से मंगल के लिए ईलाज है। मंगल कमजोर होने पर यह उपचार बताया जाता है, कालसर्प योग से इसका सम्‍बन्‍ध नहीं स्‍पष्‍ट नहीं होता)

कोई नहीं है शापित

एक बार रविन्‍द्रनाथ टैगोर ने कहा था कि शिशु के जन्‍म को देखकर लगता है कि ईश्‍वर अब तक मनुष्‍य से निराश नहीं हुआ है। मुझे भी ऐसा लगता है। अगर एक इंसान ईश्‍वर की प्रिय संतान है तो हर इंसान ईश्‍वर की उतनी ही प्रिय संतान होगा। निर्गुण ब्रह्म की रुचि अलग-अलग इंसान पैदा करने की रही भी नहीं होगी। आवश्‍यकता है तो बस अपनी क्षमताओं को पहचानकर सफल होने की।


यह कालसर्प के खंडन को लेकर मेरा बनाया गया वीडियो है, इसे यूट्यूब पर देखें और मेरे चैनल को सब्‍सक्राइब भी करें।