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कबाड़ (kabaad) – चेतना को प्रभावित करता है

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कबाड़ (kabaad) – चेतना को प्रभावित करता है

मारे घर में मौजूद लगभग हर छोटी बड़ी वस्‍तु किसी न किसी कोण से हमारी चेतना से जुड़ी होती है। चाहे वह बिटिया की पुरानी गुडि़या हो या बेटे के पुराने स्‍केट्स। ड्राइंगरूम और लिविंग रूम की सजावटी चीजें तो हम खासतौर पर संभालकर रखते हैं और उनके प्रति चिंतित भी रहते हैं, लेकिन बहुत सा सामान ऐसा भी होता है जो सामने आने के बाद ही हमें पता चलता है कि वह कबाड़ (kabaad) घर में है और उसका एक दिन निस्‍तारण किया जाना है, चाहे पुरानी किवाड़ी के अवशेष हों या खाली पड़े ढोल।

हम इन चीजों को कभी फेंकते नहीं हैं, कहने को हमारे पास एक बहाना हमेशा तैयार होता है कि कबाड़ की तरह दिखाई देने वाली इन चीजें किसी दिन काम आ सकती हैं, लेकिन दिन महीने और साल बीतते चले जाते हैं, यह कबाड़ कभी काम नहीं आता है।

इनसे संबंधित किसी वस्‍तु की जरूरत पड़ती भी है तो वह वस्‍तु हाथों हाथ मिलती नहीं है और हमें बाजार से नई खरीदकर ही लानी पड़ती है। फिर एक और वस्‍तु हमारे कबाड़ का हिस्‍सा बन जाती है।

जब हम बात करते हैं बच्‍चों के कपड़ों और खिलौनों की तो हमें आसानी से यह भान हो जाता है कि इन वस्‍तुओं से हमारा न केवल मनोवैज्ञानिक बल्कि संवेदनात्‍मक जुड़ाव स्‍वाभाविक है, लेकिन अब मैं यदि आपको यह कहूं कि टूटे हुए नल, खाली हुए पीपे और बेकार पड़ी प्‍लास्टिक की बोतलों से भी आपकी चेतना का अंश उसी प्रकार जुड़ा है जिस प्रकार बच्‍चों के कपड़ों और खिलौनों से आपकी चेतना जुड़ी है, तो निश्‍चय ही आप एक बार में यह बात स्‍वीकार नहीं कर पाएंगे।

अब आप चाहें मानें या ना मानें, घर में पड़ा यह कबाड़ न केवल आपको साइकोलॉजिकली दबाव में लेकर आता है, बल्कि घर की समृद्धि पर भी विपरीत प्रभाव डालता है। घर बनाते समय हमारे पास ऐसा कोई स्‍थान नहीं होता है, जहां हम इस कबाड़ को रख सकें, इसका नतीजा यह होता है कि यह कबाड़ कभी घर के तहखाने में जगह पाता है तो कभी छत के किसी कोने में।

बहुत हुआ तो पिछवाड़े में बने किसी अलहदा कमरे को इस प्रकार का कबाड़घर बना दिया जाता है। वास्‍तु के दृष्टिकोण से यह कबाड़ आपकी पारिवारिक समृद्धि का सबसे बड़ा बाधक है।

बहुत साल पहले मैं अपने एक दोस्‍त के घर गया। उ‍न दिनों वास्‍तु का अभ्‍यास करते हुए कुछ ही दिन हुए थे, सो उत्‍सुकतावश उनके घर का अवलोकन करने लगा। वे वणिक हैं, सो आलीशान बना हुआ घर था। घर में बहुत अधिक सामान नहीं था, जो भी सामान था, वह अपने स्‍थान पर था, या अलमारियों में बंद था। मैं छत तक गया, इतने बड़े घर की छत भी खासी बड़ी थी, यहां बीकानेर में साल में आठ महीने आ‍ंधियां आती हैं, ऐसे में छतों पर रेत का जमा होना कोई अटपटी बात नहीं है,

मैंने जितने घरों का अवलोकन किया है, उनमें से अधिकांश घरों की छतों पर रेत की जमावट मिलती ही है,  लेकिन उस घर की यह खासियत थी कि वहां छत पर मिट्टी का एक कण तक नहीं मिला। इसके बाद मैंने वणिकों के घर में यह बात खासतौर पर नोट की कि वे न तो घर में किसी प्रकार का कबाड़ रखते हैं न किसी प्रकार की गंदगी। भले ही सफाई के लिए उन्‍हें अतिरिक्‍त यत्‍न क्‍यों न करना पड़े।

यहीं से मुझे क्‍लू मिला और मेरे एक क्‍लाइंट को 2003 में मैंने घर का अवलोकन करते समय छत और अंडरग्राउंड में जमा कबाड़ को तुरंत निकालने की सलाह दी। क्‍लाइंट ने छत का कबाड़ तो तुरंत निकाल दिया लेकिन अंडरग्राउंड का ज्‍यों का त्‍यों था, इसके बावजूद अगले एक सप्‍ताह में क्‍लाइंट का किसी केस में उलझा सात लाख रुपए का पेमेंट आ गया, जिसकी वह उम्‍मीद भी नहीं कर रहा था। अब आप कल्‍पना कर सकते हैं कि क्‍लाइंट ने क्‍या किया होगा। उसने दो मजदूर लगाकर पहला काम अंडरग्राउंड को पूरी तरह साफ करने का किया।

इन दिनों दीपावली की सफाई का दौर चल रहा है। अगर आप घर की सफाई में जुटे हैं तो सावधान रहिए कि बिना बात का कबाड़ घर में न रहने पाए। हमें कई प्रकार के प्रलोभन दिखाई देते है कि अमुक वस्‍तु फलां काम आ सकती है, लेकिन भविष्‍य के एक छोटे लाभ के लिए आपको आज का कीमती भाग्‍य बर्बाद नहीं करना चाहिए।

घर के हर कोने की सफाई कीजिए, हर प्रकार का कबाड़ निकाल बाहर फेंकिए और छतों व अंडरग्राउंड को विशेष तौर पर साफ रखिए। आप देखेंगे कि घर से कबाड़ निकलने के साथ ही आप हल्‍का महसूस करने लगेंगे और इसके बाद बेहतर एवं उपयोगी सामान के लिए घर में स्‍पेस भी बन पाएगा।


इसी विषय को स्‍पष्‍ट करते हुए मेरा यह वीडियो