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कृष्‍णामूर्ति पद्धति के अनुसार जातक का जीवन स्‍तर kp level of horoscope jataka growth in life

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कृष्‍णामूर्ति पद्धति के अनुसार जातक का जीवन स्‍तर

kp level of horoscope jataka growth in life

केएस कृष्‍णामूर्ति (KP) के एक विद्वान शिष्‍य थे, एमपी शंमुघम, उन्‍होंने अपनी पुस्‍तक एस्‍ट्रोसीक्रेट्स में एक प्रसिद्ध उदाहरण देकर बताते हैं कि दक्षिण भारत का एक मीडिया समूह मालिक वर्षों तक अपने राज्‍य की राजनीति में किंगमेकर की भूमिका में रहा। उसकी मर्जी के बिना उसके राज्‍य में कोई राजनेता मुख्‍यमंत्री की कुर्सी तक नहीं पहुंच सकता था, लेकिन दशकों तक ऐसी ताकतवर स्थिति में रहने के बावजूद खुद किंगमेकर कभी मंत्री पद तक भी नहीं पहुंच पाया।

इसका कारण है कि केपी के अनुसार उस मीडिया मालिक की कुण्‍डली की श्रेणी (Level of horoscope) प्रथम श्रेणी की नहीं थी। अगर किसी जातक की कुण्‍डली प्रथम श्रेणी की न हो तो वह चाहकर भी जीवन में उन श्रेष्‍ठ पदों को प्राप्‍त नहीं कर पाता है, जिनके वह लायक होता है।

जिस समय शमुंघम (Shanmugham) ने उस व्‍यक्ति की कुण्‍डली देखी, उस दौरान उस जातक की ताकत अपने पूरे यौवन पर थी। इसके बावजूद शमुंघम ने पूरे साहस के साथ फलादेश दिया कि आप मुख्‍यमंत्री तो क्‍या कभी मंत्री तक नहीं बन पाएंगे। इस उदाहरण के साथ वे जातकों को तीन श्रेणियों में बांटते हैं।

  • प्रथम श्रेणी की कुण्‍डली लेकर पैदा होते हैं और सामान्‍य या गरीब परिवार में पैदा होने के बाद भी जिंदगी की ऊंचाइयों तक पहुंचते हैं।
  • दूसरी श्रेणी के लोग वे होते हैं जो एक सामान्‍य जिंदगी जीते हैं और अपना जीवनकाल पूरा कर सुखपूर्वक इस धरती से विदा हो जाते हैं।
  • तीसरी श्रेणी के लोग वे हैं जो अधिकतर बड़े सपने ही नहीं लेते, और अगर कोई प्रयास भी करता है तो अपेक्षित सफलताएं प्राप्‍त नहीं कर पाता है।

जातकों की श्रेणियां समझने से पहले पाठक को केएस कृष्‍णामूर्ति के सिग्निफिकेटर (Significator) को समझना होगा, यह थोड़ी लंबी प्रक्रिया है। ज्‍योतिषियों को समझाने के लिए बताया जाए तो लग्‍न के सबलॉर्ड का नक्षत्राधिपति अगर प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय, नवम, दशम एवं ग्‍यारहवें भावों में हो अथवा इन भावों को सिग्‍नीफाई करे तो जातक प्रथम श्रेणी का है। अगर पांचवे और सातवें भाव से संबद्ध हो तो द्वितीय श्रेणी का और शेष भावों में तृतीय श्रेणी का जातक होगा।

ऐसा नहीं है कि प्रथम श्रेणी के जातकों के जीवन में कठिनाइयां नहीं आती अथवा तृतीय श्रेणी के जातक कभी सफलता अर्जित नहीं करते, बल्कि जातकों की श्रेणियां यह बताती हैं कि ये लोग सपने कितने ऊंचे देखते हैं और उसके लिए कितना प्रयास करते हैं। इसके साथ ही उन्‍हें मिलने वाली सफलता की संभावना कितनी है।

अगर राजयोग की बात की जाए तो एक चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी और एक आईएएस की कुण्‍डली में लगभग एक ही तरह के राजयोग हो सकता है। दोनों ही राज का सुख लेते हैं, लेकिन आयाम का अंतर होता है। एक ने अधिक ऊंचा सपना देखा होता है और उसके लिए प्रयास करता है, दूसरा ऐसा कोई सपना नहीं देखता और प्रयास नहीं करता।

इसका यह भी अर्थ नहीं लगाया जाना चाहिए कि जितने भी चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी हैं, उनके आईएएस की तरह के राजयोग होंगे। इस स्‍तर के कर्मचारी भी कई तरह के होते हैं। जो सेवा करने के बजाय राज का सुख ही ले रहे हैं, योग का यह अंदाज उन पर अधिक सटीक बैठता है।

प्रसिद्ध ज्‍योतिषी हेमवंता नेमासा काटवे (Katwe) ने तो ग्रहों के उच्‍च एवं नीच होने के आधार पर जातकों का वर्गीकरण कर दिया था। उनके अनुसार नीच ग्रह अच्‍छे होते हैं और उच्‍च ग्रह खराब। उन्‍होंने एक सामान्‍य गृहस्‍थ की परिकल्‍पना दिमाग में रखते हुए यह माना कि अधिक महत्‍वकांक्षाएं, अधिक मेहनत और समस्‍याओं और समाधानों से अधिक जूझने वाले लोगों की जिंदगी अच्‍छी नहीं होती।

आपको बताते चलें कि उच्‍च ग्रह (Exalted) का अर्थ यह नहीं है कि वह शुभ ही हो, लेकिन इसका यह पुख्‍ता अर्थ होता है कि अमुक ग्रह का प्रभाव पूरी तरह आएगा, वहीं नीच ग्रह का प्रभाव बहत कम होता है। इस कारण वह कारक होने पर भी पूरे परिणाम नहीं दे पाता है। ऐसे में जातक को अधिक उतार चढ़ाव भी नहीं देखने पड़ते। ऐसे जातकों को काटवे ने अपेक्षाकृत बेहतर बताया है। यह उनकी निजी सोच हो सकती है, लेकिन सामाजिक सफल उन्‍हें ही माना जाता है जो सहज और शांत जीवन जीने के बजाय सफल और तेज तर्रार जिंदगी जीते हैं।