Home Kundli Milan कुण्‍डली मिलान (Horoscope Matching) कितना जरूरी?

कुण्‍डली मिलान (Horoscope Matching) कितना जरूरी?

कुंडली मिलान कितना जरूरी | Importance of Horoscope Matching
कुंडली मिलान कितना जरूरी | Importance of Horoscope Matching

कुण्‍डली मिलान (Horoscope Matching) कितना जरूरी?

भले ही हम यह कह दें कि वर और कन्‍या के जोड़े स्‍वर्ग में बनते हैं, लेकिन हकीकत की दुनिया में हम जोड़ों को मिलते और बिछड़ते हुए देखते हैं। बहुत बार ऐसा भी होता है कि जोड़े न अलग हो पाते हैं न साथ रहकर सुख भोगने काबिल रहते हैं। कुण्‍डली मिलान (Kundali Milan) में एक ज्‍योतिषी इस बात का प्रयास करता है कि संबंधों को तोड़ने वाली स्थितियों से बचा जाए।

कुण्‍डली मिलान (Kundali Matching) के लिए मोटे तौर पर अष्‍टकूट गुण मिलान, मांगलिक दोष मिलान, लग्‍न मिलान और दशा मिलान  किया जाता है। इसके अलावा दूसरे, पांचवे, सातवें और ग्‍यारहवें भाव का विश्‍लेषण वर और वधू के आगामी जीवन के बारे में सटीक जानकारी दे देता है।

भारतीय विवाह संस्‍था में विवाह  को सात जन्‍मों का बंधन मानते हैं। एक बार विवाह हो जाए तो उसे सात जन्‍म तक निभाने का वादा किया जाता है। भारतीय समाज व्‍यवस्‍था में पुराने विवाह सिद्धांतो को देखा जाए तो हमें कुल जमा आठ प्रकार के विवाह मिलते हैं।

आठ प्रकार के विवाह (Type of Marriages)

भारतीय विवाह संस्‍था आठ प्रकार के विवाह को मान्‍यता देती है। ब्रह्म विवाह में वर एवं वधू पक्ष की सहमति से सुयोग्‍य वर का कन्‍या से विवाह निश्चित कर देना ब्रह्म विवाह कहलाएगा।

इसे कहते हैं अरेंज मैरिज। दै‍व विवाह में किसी पंडित अथवा ऋषि को अपनी कन्‍या किसी दैवीय कार्य के एवज में दान करना दैव विवाह कहलाएगा। ऐसे विवाह आजकल नहीं देखे जाते।

आर्ष विवाह में कन्‍या के परिजनों को एक निश्चित मूल्‍य देकर खरीदी की जाती है। जिसे कहते हैं बहू खरीदकर लाना। कुछ समाजों में यह आज भी प्रचलित है। कन्‍या की सहमति न हो फिर भी कन्‍या के परिजन अभिजात्‍य वर्ग के किसी श्रेष्‍ठ पुरुष के साथ कन्‍या का विवाह कर दे तो उसे प्रजापत्‍य विवाह कहते हैं। हो सकता है कि यह देखने में अरेंज मैरिज दिखाई दे, लेकिन कन्‍या की सहमति न होना अरेंज को प्राजपत्‍य बना देता है।

परिवार की सहमति न हो, फिर भी वर और कन्‍या एक दूसरे की सहमति से विवाह कर ले तो इसे गंधर्व विवाह कहते हैं। आज की भाषा में Love marriage. अगर कन्‍या की रजामंदी न हो और कन्‍या पक्ष को दबाया जाए और पैसा देकर कन्‍या को अपनाया जाए तो इसे असुर विवाह कहते हैं।

कन्‍या की इच्‍छा के बिना उसका अपहरण कर उससे विवाह कर लेना राक्षस विवाह है। अगर कन्‍या ने अपनी चेतना खोई हुई है, उस अवस्‍था का लाभ उठाकर शारीरिक संबंध बना लेना पैशाच विवाह की श्रेणी में आता है।

ध्‍यानपूर्वक देखा जाए तो आज भी ये सभी प्रकार के विवाह प्रचलन में हैं। हालांकि ज्‍योतिषी के पास आने वाले अधिकांश जातक ब्रह्म विवाह के लिए ही वर और कन्‍या की कुण्‍डली का मिलान कराते हैं, लेकिन यह तय करना कठिन होता है कि इस संबंध में कन्‍या की सहमति है या नहीं।

असुर, राक्षस और पैशाच विवाहों को भी ज्‍योतिष की इस प्रकार की गणनाओं में नहीं लिया जाता। हालांकि श्रेष्‍ठ विवाह वही होगा जिसमें कि कन्‍या की सहमति हो फिर भी गणना करते वक्त ब्रह्म, देव, आर्ष और प्रजापत्‍य विवाह के लिए एक ही प्रकार की गणनाएं होंगी। इसके अलावा गंधर्व विवाह जिसे कि हम प्रेम विवाह भी कहते हैं, उसके लिए पंचम भाव और शुक्र पर अधिक जोर दिया जाएगा।

विवाह के मायने

ज्‍योतिषीय दृष्टिकोण से वर और कन्‍या के विवाह के कई मायने होते हैं। एक ओर जहां परिवार की वृद्धि होती है तो दूसरी ओर रति सुख (Sexual Pleasure) का आनन्‍द भी है। स्‍त्री धन के रूप में जहां परिवार को संपन्‍नता मिलती है, वहीं दो परिवार एवं दो व्‍‍यक्तियों के बीच एक स्‍थाई संबंध भी बनता है।

एक सफल विवाह के टिके रहने में संतान  की भी महत्‍वपूर्ण भूमिका मानी गई है। केएस कृष्‍णामूर्ति ने विवाह के लिए दूसरे भाव  को लिया परिवार की वृद्धि के लिए, पांचवे भाव को लिया संतान प्राप्ति के लिए, सातवें भाव  को लिया रति सुख के लिए और ग्‍यारहवें भाव को लिया इच्‍छाओं की पूर्ति के लिए। हम देखते हैं कि विवाह पांच घरों के फलों का प्रभावित करता है।

कुण्‍डली मिलान के लिए आई कुण्‍डलियों में केवल अष्‍टकूट गुण मिलान (Ashtkoot Guna Milan) अथवा मंगलदोष  मिलान को ही नहीं देखा जाएगा, इसमें यह देखना भी महत्‍वपूर्ण है कि दोनों कुण्‍डलियां एक दूसरे की पूरक  बन पाती हैं या नहीं।

हालांकि गुण मिलान में मोटे तौर पर नक्षत्रों  का तुलनात्‍मक अध्‍ययन बता देता है कि स्‍त्री और पुरुष के बीच किस कोटि का संबंध रहेगा, इसके अलावा भी कई बिंदू ऐसे होते हैं जो दोनों के बीच के तारतम्‍य  को अधिक स्‍पष्‍टता से बता पाते हैं।

विवाह का समय (Vivah Muhurat)

कुछ जातक कई बार विवाह करते हैं तो अधिकांश, सही कहें तो करीब 98 प्रतिशत जातक जीवन में एक बार ही विवाह करते हैं। मजे की बात यह है कि किसी भी जातक की कुण्‍डली में विवाह का योग कई बार आता है।

कम से कम तीन बार तो आता ही है। अगर बचपन में विवाह योग बनता है तो जातक सुखपूर्वक अपने परिजनों के साथ आनन्‍द का समय बिताता है। युवावस्‍था में आता है तो जातक का विवाह होता है और तीसरी बार वृद्धावस्‍था में आता है, तब जातक सुखद पलायन के लिए तैयार होता है।

कई बार कुण्‍डली मिलान में दशाओं का क्रम और विवाह की तिथि  भी महत्‍वपूर्ण हो उठती है। दो जातकों का विवाह उसी समय संभव हो पाता है जबकि दोनों की कुण्‍डली में विवाह के योग समान समय पर बन रहे हों।

मेरा निजी अनुभव है कि कई बार कुण्‍डली मिलान में 28 गुण तक मिल जाते हैं, मंगल दोष भी नहीं होता, इसके बावजूद विवाह नहीं हो पाता है, क्‍योंकि दोनों में से एक जातक के विवाह का समय नहीं आया हुआ होता है।

विवाह का समय निर्धारित करने के लिए सबसे पहले शनि को साक्षी माना गया है। इसके बाद गुरु, मंगल और सप्‍तमेश भी विवाह के साक्ष्‍य देते हैं। सभी साक्ष्‍यों के अनुकूलता का समय विवाह का समय निर्धारित करता है।