Home Astrology Kundli Horoscope ज्‍योतिष में शैय्या सुख (Sexual Life / Sexual Pleasure in Astrology )

ज्‍योतिष में शैय्या सुख (Sexual Life / Sexual Pleasure in Astrology )

Sexual Life in Kundali (कुंडली में शैय्या सुख)
Sexual Life in Kundali (कुंडली में शैय्या सुख)

Rebonding Husband-Wife and Sexual life

पुनर्मिलन और शैय्या सुख

जातक का नाम: देवदत्त
प्रश्‍न : पत्नी से कब मिलना होगा?
होररी नंबर: 110 (0 से लेकर 249 के बीच)
निर्णय की तारीख और समय: 05-09-2013, 20:09:21
निर्णय का स्थान: पार्क स्ट्रीट
22N27, 88E20, कोलकात्ता, वेस्ट बंगाल

सूत्रयदि 7 या 11 वीं  कस्प का उप स्वामी 2 (परिवार), 5 (प्यार और रोमांस), 7 (जीवन साथी, पत्नी), 11 (इच्छापूर्ति, सफलता) या 12 (शैया सुख), 2, 5, 7, 11 और 12 के कारक हो तो इनके संयुक्त दशा भुक्ति अंतर के समय में मिलन हो सकता है।

चन्द्र सवाल की प्रवृति दर्शाता है 

चन्द्र (सिंह 20-44-08)-चन्द्र, शुक्र के नक्षत्र और गुरु के उप में है। चन्द्रमा के नक्षत्र में कोई ग्रह नहीं है। यह 11 भाव का स्वामी होकर 12 में स्थित है और दूसरे कस्प का उप स्वामी है। नक्षत्र स्वामी शुक्र 2 और 9 भाव का स्वामी होकर पहले भाव में स्थित है। उप स्वामी गुरु 4 और 7 भाव का स्वामी होकर 10 में स्थित है। चन्द्र  सम्बंधित भावों से सम्बंधित है, इसलिए सवाल सत्य है।

गुलबर्गा पद्धति 

अगर होररी अंक का उप स्वामी शासक ग्रहों में चन्द्र का नक्षत्र स्वामी या लग्न का नक्षत्र स्वामी है तो जबाव सकारात्मक होगा, वरना नकारात्मक होगा। इस मामले में होररी नंबर 110 का उप स्वामी केतु है और शासक ग्रहों में लग्न का नक्षत्र स्वामी भी केतु है। अतः मैंने जातक से कहा कि तुम्हारे सवाल का जबाव तुम्हारी इच्छानुसार सकारात्मक होगा।

लग्न के उप स्वामी द्वारा पुष्टिकरण  

होररी चार्ट में लग्न जातक के प्रयासों को दर्शाता है। इस मामले में लग्न उप स्वामी केतु आठवें भाव में स्थित है। केतु के नक्षत्र में कोई ग्रह नहीं है और केतु 1,5,11 कस्प का उप स्वामी है। केतु शुक्र के नक्षत्र में है और शुक्र 2,9 भावों का स्वामी होकर लग्न (पहले) भाव में स्थित है। केतु चन्द्र के उप में है। चन्द्र के नक्षत्र में कोई ग्रह नहीं है। चन्द्र 11 भाव का स्वामी होकर 12 में स्थित है और 2 कस्प का उप स्वामी है। अतः लग्न उप स्वामी जातक के सवाल से सम्बंधित भावों से सम्बंधित है, इसलिए जातक के प्रयास सफल होंगे।

भावों का विश्लेषण-7 कस्प (मीन 07-00-00): 7 का उप स्वामी बुध सूर्य के नक्षत्र और राहु के उप में है। बुध 1,10 का स्वामी होकर 12 भाव में स्थित है। बुध के नक्षत्र में कोई ग्रह नहीं है और 3,7,9 कस्प का उप स्वामी है। नक्षत्र स्वामी सूर्य 12 भाव का स्वामी होकर 12 भाव में ही स्थित है। सूर्य चन्द्र और बुध के साथ है। चन्द्र के नक्षत्र में कोई ग्रह नहीं है। चन्द्र 2 कस्प का उप स्वामी और 11 भाव का स्वामी होकर 12 में स्थित है। बुध के नक्षत्र में कोई ग्रह नहीं है। बुध 1,10 का स्वामी होकर 12 में स्थित है और 3,7,9 कस्प का उप स्वामी भी है। उप स्वामी राहु दूसरे भाव में स्थित है। राहु शनि के साथ है, अतः शनि के एजेंट का रोल अदा कर रहा है। शनि 5,6 भावों का स्वामी होकर 2 में स्थित है।

सातवें कस्प का उप स्वामी 2, 7, 11, 12 भावों का कारक है और 2, 5 भावों से सम्बंधित है। अतः जातक जीवनसाथी (पत्नी) के साथ फिर से मिलेगा और शैया सुख का आनंद ले सकेगा, यह निश्चित है।

2, 5, 7, 11 और 12 भावों के ग्रह ए. बी, सी, डी, ई क्रम में 

ए=भावस्थ नक्षत्रों में ग्रह 

बी=भावों में ग्रह 

सी=नक्षत्र स्वामियों में ग्रह 

डी=भाव स्वामी 

ई=युति और दृष्टि कारक (ए), (बी), (सी), (डी)

प्रभाव की कक्षा 

सूर्य और चंद्र:  ± 8°

छाया ग्रहों के अलावा ग्रह:  ± 6°

छाया ग्रह: राशियों में

भाव  ए  बी  सी डी
2 मंगल, शनि, राहु शनि, राहु केतु, सूर्य, चन्द्र शुक्र
5 मंगल शनि
7 गुरु गुरु
11 शुक्र मंगल चन्द्र
12 बुध सूर्य, चन्द्र , बुध बुध सूर्य

 

(ए)  2, 5, 7, 11 और 12 के कारक ग्रह: सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु केतु.

निर्णय के समय शासक ग्रह 
लग्न मंगल – केतु – राहु
चन्द्र सूर्य – शुक्र – गुरु
वारेश गुरु
छाया ग्रह राहु – केतु

 (बी) शासक ग्रह इस प्रकार हैं–सूर्य, मंगल, गुरु, शुक्र, राहु, केतु

(सी) शुभ फलदाई  (उभय) ग्रह जो 3 या 8 या 12 के कारक हैं और शासक ग्रहों में हैं: सूर्य, चन्द्र, मंगल, गुरु, शुक्र, राहु, केतु

संयुक्त (दशा-भुक्ति-अंतर) समय 

निर्णय के समय दशा भुक्ति अंतर शुक्र-गुरु-बुध (10-07-2013 से 26-11-2013 तक) चल रहे थे। शुक्र और गुरु शुभ फलदाई और उभय ग्रह हैं, इस प्रकार दशा भुक्ति शुक्र गुरु  ( 30-09-2012 से 31-05-2015 तक) काम हो सकता है।

अंतर स्वामी बुध (10-07-2013 से 26-11-2013 तक) शुभ नहीं है। अगला अंतर केतु शुभ है, मंगल का प्रतिनिधि है और शासक ग्रहों में मजबूत है। यह 8 में बैठा है और 1, 5, 11 कस्प का उप स्वामी है। इसका नक्षत्र स्वामी शुक्र भी शुभफलदाई है। शुक्र एक भाव में है और दो व नौ का स्वामी है। केतु का उप स्वामी चंद्र 12 में आसीन है और 11 का स्वामी व 2 का उपस्वामी है। केतु संबंधित भावों से सबंधित है, लिहाजा शुक्र-गुरु-केतु (26-1-2013 से 21जनवरी 2014) तक जातक की इच्छा पूरी होनी चाहिए। 

अब सूक्ष्म दशा देख लेते हैं। सूर्य, मंगल और राहु है। लेकिन मंगल (16-12-2013 से 19-12-2013 तक) या राहु (19-12-2013 से 28-12-2013) तक काम होना चाहिए। मंगल (स्वामी या भावस्थ के नक्षत्र में) 11 का है। वैसे भी छाया ग्रह अन्य ग्रहों से ज्यादा मजबूत होते हैं।

मेरा अभिमत: जीवन साथी से मिलन और शारीरिक सुख प्राप्ति शुक्-गुरु-केतु-मंगल (16-12-2013 से 19-12-2013) अथवा शुक्र-गुरु-केतु-राहु(1-9-12-2013 से 28-12-2013) के बीच मिलनी चाहिए। 


वास्तविक तथ्य: बात सच हो गयी। 17 दिसंबर को जब गुरु-केतु-शुक्र का समय था, उनका फिर से गठबंधन हो गया। भगवान गणेश और गुरुजी केएसके और मेरे गुरुजी पी राय चौधऱी को प्रणाम।


लेखक – डाॅ. निर्मल कोठारी