Home Astrology Kundli Horoscope स्‍वर विज्ञान (Swar Vigyan)

स्‍वर विज्ञान (Swar Vigyan)

unlucky habits Swar Yoga Swar Vigyan स्‍वर विज्ञान Vedic Astrologers in India

स्‍वर विज्ञान (Swar Vigyan) का अल्प ज्ञान हमें काफी सारी दैनिक समस्यायों से बचा लेता है और निरंतर अभ्यास हमें योगियों के स्तर तक ले  जा सकता है।

श्वसन प्रक्रिया  हो सकता है हमारे लिए बिना प्रयास किए की जाने वाली एक सामान्‍य क्रिया है। शरीर की अधिकांश क्रियाओं के लिए हमें सायस प्रयास करने पड़ते हैं। श्‍वास के प्रति हम सचेत हो या न हों हृदय की धड़कन की तरह श्‍वास भी निरंतर चलने वाली क्रिया है। श्‍वास के साथ हम प्राणवायु शरीर के भीतर लेते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टिकोण से श्‍वास के साथ आने वाली ऑक्‍सीजन हमारे फेफड़ों तक जाती है और वहां पर रक्‍त कोशिकाएं उस ऑक्‍सीजन को लेकर हमारे विभिन्‍न अंगों तक पहुंचाती हैं, लेकिन श्‍वास का काम यही समाप्‍त नहीं हो जाता।

योग में श्‍वास को एक अलग अंदाज में प्राण कहा गया है। श्‍वास लेने की विधि में व्‍यक्ति के स्‍वस्‍थ और रोगी रहने का राज छिपा है। सही समय पर सही मात्रा में श्‍वास लेने वाला व्‍यक्ति रोग से बचा रहता है।

योग की तरह ही ज्‍योतिष में भी श्‍वास के प्रकार, नासाग्र से निकलने वाली श्‍वास की शक्ति, इडा (बाई नासिका) अथवा पिंगला (दाई नासिका) का चलना अथवा दोनों का साथ चलना (सुषुम्‍ना) को लेकर फलादेश भी बताए गए हैं।

अगर हम सही समय पर सही नासिका का उपयोग कर रहे होते हैं तो इच्छित कार्यों को पूरा करने में सफल होते हैं।

रावण संहिता में स्‍वर विज्ञान (Swar Vigyan) के संबंध में विशद् जानकारी दी गई है। हालांकि यह अधिकांशत: प्रश्‍नकर्ता द्वारा प्रश्‍न पूछे जाने पर ज्‍योतिषी द्वारा ध्‍यान में रखे जाने वाले बिंदुओं पर केन्द्रित है, लेकिन किसी आम जातक के लिए भी ये तथ्‍य इतने ही महत्‍वपूर्ण है।

अगर एक जातक  सावधानीपूर्वक अपने श्‍वसन यानी इडा अथवा पिंगला स्‍वर का ध्‍यान रखे तो बहुत से कार्यों में अनायास सफलता प्राप्‍त कर सकता है।

हर जातक को रोजाना सुबह उठते ही अपने स्‍वर की जांच करनी चाहिए। इसके लिए सबसे श्रेष्‍ठ समय सुबह सूर्योदय से पूर्व का बताया गया है।

Swar Vigyan 1

स्‍वर विज्ञान (Swar Vigyan) के परिणाम :

सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार को अगर वाम स्‍वर यानी बाई नासिका से स्‍वर चल रहा हो तो यह श्रेष्‍ठ होता है। इसी प्रकार अगर मंगलवार, शनिवार और रविवार को दक्षिण स्‍वर यानी दाईं नासिका से स्‍वर चल रहा हो तो इसे श्रेष्‍ठ बताया गया है।

अगर स्‍वर इसके प्रतिकूल हो तो

  • रविवार को शरीर में वेदना महसूस होगी
  • सोमवार को कलह का वातावरण मिलेगा
  • मंगलवार को मृत्‍यु और दूर देशों की यात्रा होगी
  • बुधवार को राज्‍य से आपत्ति होगी
  • गुरु और शुक्रवार को प्रत्‍येक कार्य की असिद्धी होगी
  • शनिवार को बल और खेती का नाश होगा

स्‍वर को तत्‍वों के आधार पर बांटा भी गया है। हर स्‍वर का एक तत्‍व होता है।
यह इडा या पिंगला (बाई अथवा दाई नासिका) से निकलने वाले वायु के प्रभाव से नापा जाता है।

  • श्‍वास का दैर्ध्‍य 16 अंगुल हो तो पृथ्‍वी तत्‍व
  • श्‍वास का दैर्ध्‍य 12 अंगुल हो तो जल तत्‍व
  • श्‍वास का दैर्ध्‍य 8 अंगुल हो तो अग्नि तत्‍व
  • श्‍वास का दैर्ध्‍य 6 अंगुल हो तो वायु तत्‍व
  • श्‍वास का दैर्ध्‍य 3 अंगुल हो तो आकाश तत्‍व होता है।

यह तत्‍व हमेशा एक जैसा नहीं रहता। तत्‍व के बदलने के साथ फलादेश भी बदल जाते हैं।
आगे हम देखेंगे तत्‍व के अनुसार क्‍या क्‍या फल सामने आते हैं।

शुक्‍ल पक्ष में नाडि़यों में तत्‍व का संचार देखें तो आमतौर पर वाम स्‍वर शुभ होते हैं और दक्षिण स्‍वर अशुभ।

  • पृथ्‍वी तत्‍व चले तो महल में प्रवेश
  • अग्नि तत्‍व चले तो जल से भय, घाव, घर का दाह
  • वायु तत्‍व चले तो चोर भय, पलायन, हाथी घोड़े की सवारी मिलती है।
  • आकाश तत्‍व चले तो मंत्र, तंत्र, यंत्र का उपदेश देव प्रतिष्‍ठा, व्‍याधि की उत्‍पत्ति, शरीर में निरंतर पीड़ा

अगर किसी भी समय में दोनों नाडि़यां एक साथ चलें तो योग में इसे उत्‍तम माना जाता है, लेकिन फल प्राप्ति के मामले में       देखें तो फलों का समान फल कहा गया है। इसे बहुत उत्‍तम नहीं माना जाता है।

यात्रा के संबंध में कहा जाता है कि यात्रा के दौरान इडा नाड़ी का चलना शुभ है लेकिन जहां पहुंचता है वहां पहुंचकर घर, ऑफिस या स्‍थल में प्रवेश करते समय पिंगला नाड़ी चलनी चाहिए।

अगली बार जब आप घर से बाहर निकलें तो यह जांच कर लें कि आपका कौनसा स्‍वर चल रहा है। इसी से आपको एक फौरी अनुमान हो जाएगा कि आप जिस काम के लिए निकल रहे हैं वह पूरा होगा कि नहीं।